Does Yoga believe in love ?
Yogic love is in some way different from the romantic love portrayed in films. While romantic love often emphasizes passion, desire, and attachment, yogic love transcends these fleeting emotions. It is a profound connection that expands consciousness and fosters unity with oneself and the universe. This form of love invites us to look beyond superficial attractions and delve into deeper realms of compassion, empathy, and self-acceptance.
The Essence of Yogic Love
Yogic love encourages us to embrace our true selves, recognizing that we are more than just our physical bodies or emotional experiences. It invites us to expand our consciousness and cultivate a sense of interconnectedness with all beings. This journey begins with self-love, which serves as the foundation for loving others and the world around us.
Self-Love
To truly love ourselves, we must accept who we are—body, mind, and intellect—with all our imperfections and faults. This acceptance is not about complacency; rather, it is a recognition of our inherent worthiness. One effective practice for developing self-love is Panchakosha Dharana, which involves realising the five layers of our being:
Annamaya Kosha (physical body)
Pranamaya Kosha (energetic body)
Manomaya Kosha (mental body)
Vijnanamaya Kosha (wisdom body)
Anandamaya Kosha (bliss body)
Cultivating Love for Others
In yogic philosophy, cultivating love for others involves developing Karuna, or compassion, as suggested in Patanjali’s Yoga Sutras. This requires us to drop our self-centered ideas and genuinely put ourselves in others’ shoes. By feeling what others are experiencing—joys, sorrows, struggles—we can foster empathy that deepens our connections. Practicing active listening and engaging in acts of kindness can also enhance our capacity for love. When we approach others with an open heart and mind, we create space for authentic relationships to flourish.
Universal Love
Universal love extends beyond individual relationships to encompass all beings. To cultivate this expansive love, we can work on balancing and purifying the Anahata (Heart Chakra), where love and devotion reside. Through Anahata Dharana, or focused meditation on the heart center, we can fill our hearts with unconditional love for everyone around us.
When you are filled with love, surrender naturally follows—not as a sign of weakness or passivity but as an act of relinquishing control and trusting the flow of life. Surrendering allows us to let go of rigid expectations and embrace the present moment fully. As we practice surrender alongside trust, life begins to unfold more simply and beautifully. Through this journey of love and trust, we come to realize that we have not lost anything; instead, we have gained so much more. The richness of life becomes apparent when viewed through the lens of love—a lens that reveals connection, purpose, and joy in every moment.
In conclusion, embracing yogic love as a form of surrender transforms our relationships with ourselves and others. By cultivating self-love, compassion for others, and universal love while practicing surrender, we align ourselves with the deeper truths of existence. This path leads to a life filled with beauty, simplicity, and profound connection—a testament to the power of love in its truest form.
क्या योग प्रेम मे विश्वास रखता है ?
प्रेम: समर्पण का एक रूप
योगिक प्रेम किसी हद तक उन रोमांटिक प्रेमों से भिन्न है, जो फिल्मों में दिखाए जाते हैं। जबकि रोमांटिक प्रेम अक्सर जुनून, इच्छा और लगाव पर जोर देता है, योगिक प्रेम इन क्षणिक भावनाओं से परे जाता है। यह एक गहरा संबंध है जो चेतना का विस्तार करता है और स्वयं और ब्रह्मांड के साथ एकता को बढ़ावा देता है। यह प्रेम हमें सतही आकर्षणों से परे देखने के लिए आमंत्रित करता है और करुणा, सहानुभूति और आत्म-स्वीकृति के गहरे क्षेत्रों में प्रवेश करने के लिए प्रेरित करता है।
योगिक प्रेम का सार
योगिक प्रेम हमें अपने सच्चे स्वरूप को अपनाने के लिए प्रेरित करता है, यह पहचानते हुए कि हम केवल अपने शारीरिक शरीर या भावनात्मक अनुभवों से अधिक हैं। यह हमें चेतना का विस्तार करने और सभी प्राणियों के साथ एकता की भावना विकसित करने के लिए आमंत्रित करता है। यह यात्रा आत्म-प्रेम से शुरू होती है, जो दूसरों और हमारे चारों ओर की दुनिया को प्यार करने के लिए एक आधार तैयार करती है।
आत्म-प्रेम
अपने आप को सच्चे प्रेम से प्यार करने के लिए, हमें स्वयं को स्वीकार करना चाहिए—शरीर, मन और बुद्धि—अपनी सभी कमियों और दोषों के साथ। यह स्वीकृति केवल आत्म तुष्टि नहीं है; बल्कि, यह हमारी अंतर्निहित मूल्यवानता की पहचान है। आत्म-प्रेम विकसित करने के लिए एक प्रभावी अभ्यास पंचकोश धारणा है, जिसमें हमारे अस्तित्व की पांच परतों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है:
अन्नमय कोश (शारीरिक)
प्राणमय कोश (ऊर्जाई)
मनमय कोश (मानसिक)
विज्ञानमय कोश (ज्ञान)
आनंदमय कोश (आनंद)
दूसरों के प्रति प्रेम विकसित करना
योगिक दर्शन में दूसरों के प्रति प्रेम विकसित करना करुणा या सहानुभूति विकसित करने में निहित है, जैसा कि पतंजलि के योग सूत्रों में बताया गया है। इसके लिए हमें अपने आत्म-केंद्रित विचारों को छोड़ना होगा और वास्तव में दूसरों की स्थिति में खुद को रखना होगा। दूसरों के अनुभव—सुख, दुख, संघर्ष—को महसूस करके हम सहानुभूति को बढ़ा सकते हैं जो हमारे संबंधों को गहरा बनाती है। सक्रियता से सुनने का अभ्यास करना और दयालुता के कार्यों में संलग्न होना भी हमारे प्रेम की क्षमता को बढ़ा सकता है। जब हम दूसरों के प्रति खुले दिल और मन से संपर्क करते हैं, तो हम वास्तविक संबंधों को फलने-फूलने का अवसर प्रदान करते हैं।
सार्वभौमिक प्रेम
सार्वभौमिक प्रेम व्यक्तिगत संबंधों से परे जाकर सभी प्राणियों को शामिल करता है। इस व्यापक प्रेम को विकसित करने के लिए, हम अनाहत (हृदय चक्र) को संतुलित और शुद्ध करने पर काम कर सकते हैं, जहाँ प्रेम और भक्ति निवास करती हैं। अनाहत धारणा के माध्यम से, या हृदय केंद्र पर केंद्रित ध्यान द्वारा, हम अपने दिलों को सभी के प्रति बिना शर्त प्रेम से भर सकते |
जब आप प्रेम से भरे होते हैं, तो समर्पण स्वाभाविक रूप से अनुसरण करता है—यह कमजोरी या निष्क्रियता का संकेत नहीं होता बल्कि नियंत्रण छोड़ने और जीवन की धारा पर विश्वास करने का कार्य होता है। समर्पण हमें कठोर अपेक्षाओं को छोड़ने और पूरी तरह से वर्तमान क्षण को अपनाने की अनुमति देता है। जब हम समर्पण और विश्वास का अभ्यास करते हैं, तो जीवन अधिक सरल और सुंदर बनने लगता है।इस प्रेम और विश्वास की यात्रा के माध्यम से, हम यह महसूस करते हैं कि हमने कुछ नहीं खोया; इसके बजाय, हमने बहुत कुछ पाया है। जीवन की समृद्धि तब स्पष्ट होती है जब इसे प्रेम की दृष्टि से देखा जाता है—एक दृष्टि जो हर क्षण में संबंध, उद्देश्य और आनंद प्रकट करती है।
अंत में, योगिक प्रेम को समर्पण के रूप में अपनाना हमारे साथ-साथ दूसरों के साथ संबंधों को बदल देता है। आत्म-प्रेम, दूसरों के प्रति सहानुभूति और सार्वभौमिक प्रेम विकसित करते हुए जब हम समर्पण का अभ्यास करते हैं, तो हम अपने अस्तित्व की गहरी सच्चाइयों के साथ तालमेल बिठाते हैं। यह मार्ग एक ऐसे जीवन की ओर ले जाता है जो सुंदरता, सरलता और गहरे संबंधों से भरा होता है—यह प्रेम की सच्ची शक्ति का प्रमाण होता है।
One response to “Does Yoga believe in love ?”
मस्त स्व चा विचार स्व वर प्रेम
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